नौकरी करें या नहीं? || आचार्य प्रशांत, वैराग्य शतकम् पर (2017)

2019-10-25 3

वीडियो जानकारी:

शब्दयोग सत्संग
१३ दिसंबर २०१७
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा

वैराग्य शतकम, श्लोक, २१
जब हमें भोजन के लिए फल, पीने के लिए मधुर पानी, सोने के लिए पृथ्वी, पहनने के लिए पेड़ों की छाल, पर्याप्त रूप से उपलब्ध हैं, तभी हम, धन के मद से उन्मत्त इन्द्रियों वाले दुर्जनों के निरादर को क्यों सहें?

प्रसंग:
नौकरी अगर नरक है तो उसे झेलना क्यों मंजूर है?
नौकरी न झेली जा रही हो तो क्या करें?
हम अपना शोषण के लिए राज़ी क्यों हैं?
काम में मन क्यों नहीं लगता?
यदि नौकरी में मन नहीं लग रहा है तो क्या नौकरी छोड़ना सही कदम है?
यदि काम में मन न लगे तो क्या करें?
काम करने का मन न हो तो क्या करें?
नौकरी में बॉस परेशान करे तो क्या करें?
नौकरी में मन न लगे तो क्या करें?
कैसी नौकरी अच्छी?

संगीत: मिलिंद दाते

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