आगरा. तुम्हारे शहर में मय्यत को सब कांधा नहीं देते, हमारे गांव में छप्पर भी सब मिल कर उठाते हैं। शायर मुनव्वर राणा ने ये पंक्तियां भले ही किसी अन्य मसले के लिए लिखी हों, लेकिन यह आगरा के खेड़ा साधन गांव पर सटीक बैठती हैं। यह ऐसा गांव हैं, जहां कई घरों की एक ही अलमारी में आपको गीता और कुरान एक साथ दिख जाएंगी। जहां दादी कुरान की आयतों की तिलावत करतीं हैं तो पोती रामचरित मानस के चौपाइयों को गाती है। औरंगजेब के डर से यहां कई लोगों ने इस्लाम कुबूल किया था, लेकिन मुगल साम्राज्य खत्म होते ही कई लोग वापस हिन्दू बन गए तो कई मुस्लिम ही रहे। स्थिति यह है कि एक ही घर में हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्म को मानने वाले रहते हैं। दैनिक भास्कर प्लस ऐप के रिपोर्टर रवि श्रीवास्तव की रिपोर्ट-