लोकसभा चुनाव में प्रचार के साथ साथ जुबानी हमले भी जारी है. इन हमलों में भाषा का स्तर लगातार गिरता जा रहा है और भावनाओं को ठेस पहुंचाने की होड़ सी चल पड़ी है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या किसी धर्म या संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति के खिलाफ भड़काऊ बयानों के इस्तेमाल से वोट हासिल किए जा सकते है? आखिर क्यों यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को ‘हरा वायरस’ तो बीएसपी सुप्रीमो मायावती को ‘मुसलमान’ किसी वोट बैंक की तरह दिखाई देते हैं?