बागपत के बालौनी कस्बे के पुरा गांव में भगवान शिव का प्राचीन मंदिर है। इसे प्राचीन सिद्धपीठ माना जाता है। पुरामहादेव में शिवलिंग को भगवान परशुराम ने स्थापित किया था। प्राचीन समय में यहां कजरी वन हुआ करता था। वन में ऋषि जमदाग्नि, पत्नी रेणुका सहित अपने आश्रम में रहते थे।
एक बार राजा सहस्त्रबाहु शिकार खेलते हुए आश्रम में पहुंचे। ऋषि की अनुपस्थिति में रेणुका ने कामधेनु गाय की कृपा से राजा का आदर सत्कार किया। राजा इस गाय को बलपूर्वक यहां से ले जाना चाहता था, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सका। क्रोधित राजा, रेणुका को ही अपने साथ अपने महल में ले आया। रानी ने अपनी छोटी बहन द्वारा रेणुका को मुक्त्त कर दिया। रेणुका ने वापस आकर सारा वृतांत ऋषि को सुनाया लेकिन ऋषि ने एक रात्रि दूसरे पुरुष के महल में रहने के कारण रेणुका को आश्रम छोड़ने का आदेश दिया।
रेणुका ने प्रार्थना की कि वह आश्रम छोड़कर नहीं जाएगी। इस पर ऋषि ने अपने तीन पुत्रों को उनकी माता का सिर धड़ से अलग करने को कहा, लेकिन पुत्रों ने मना कर दिया। चौथे पुत्र परशुराम ने पितृ आज्ञा को अपना धर्म मानते हुए माता का सिर धड़ से अलग कर दिया। बाद में परशुराम को इसका घोर पश्चाताप हुआ। उन्होंने थोड़ी दूर पर ही घोर तपस्या आरंभ कर दी तथा वहां शिवलिंग स्थापित कर पूजा करने लगे।
उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए तथा वरदान मांगने को कहा। भगवान परशुराम ने अपनी माता को पुनर्जीवित करने की प्रार्थना की। भगवान शिव ने उनकी माता को जीवित कर दिया तथा एक परशु (फरसा) भी दिया। परशुराम ने अपने फरसे से राजा सहस्त्रबाहु को मार दिया। जिस स्थान पर उन्होंने शिवलिंग की स्थापना की वहीं आज भव्य मंदिर है।
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