मॉग की सिन्दूर रेखा तुमसे ये पूछेगी कल,
यूं मुझे सर पर सजाने का तुम्हें अधिकार क्या है।
तुम कहोगी वो समर्पण बचपना था तो कहेगी,
गर वो सब कुछ बचपना था तो कहो फिर प्यार क्या है। — 2
कल कोई अल्हड़ अयाना बाबरा झोंका पवन का,
जब तुम्हारे इंगितों पर गन्ध भर देगा चमन में
या कोई चंदा धरा का रूप का मारा वेचारा,
कल्पना के तार से नक्षत्र जड देगा गगन पर
तब यही विछुये, महावर, चुडियां, गजरे कहेंगे,
इस अमर सौभाग्य के श्रंगार का अधिकार क्या है।
मॉग की सिन्दूर रेखा तुमसे ये पूछेगी कल,
यूं मुझे सर पर सजाने का तुम्हें अधिकार क्या है।
तुम कहोगी वो समर्पण बचपना था तो कहेगी,
गर वो सब कुछ बचपना था तो कहो फिर प्यार क्या है।
कल कोई दिनकर विजय का सेहरा सर पर सजाये,
जब तुम्हारी सप्तवर्णी छांव में सोने चलेगा
या कोई हारा थका व्याकुल सिपाही तुम्हारे,
वक्ष पर धर सीस हिचकियां रोने लगेगा
तब किसी तन पर कसीं दो बांह जुड कर पूछ लेंगी,
इस प्रणय जीवन समर में जीत क्या है हार क्या है।
मॉग की सिन्दूर रेखा तुमसे ये पूछेगी कल,
यूं मुझे सर पर सजाने का तुम्हें अधिकार क्या है।
तुम कहोगी वो समर्पण बचपना था तो कहेगी,
गर वो सब कुछ बचपना था तो कहो फिर प्यार क्या है।
— डा0 कुमार विश्वास (Dr. Kumar Vishwas)
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