शाम-ए-हिन्दुस्तान में कविताओं की बरसात ने श्रोताओं को सराबोर किया। झमाझम बारिश के बीच श्रोताओं को साहित्य के विविध रूपों से रूबरू होने का मौका मिला। कभी हंसी के ठहाके गूंजे तो कभी वीर रस की कविताएं दिलों में जोश भर गईं। श्रृंगार की कविताओं ने मौसम से सुर मिलाए। लहुरी काशी के मंच पर कवियों के समागम ने शाम को यादगार बना दिया। रचनाओं पर तालियों की गड़गड़ाहट से परिसर गूंजता रहा।
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