भागलपुर। बंगाल की दुर्गापूजा का भारतीय त्योहारों में अहम स्थान है। यह मात्र पराशक्ति देवी मां दुर्गा की आराधाना का पर्व ही नहीं, बल्कि बंगाल के सामाजिक-धार्मिक जनजीवन में गहराई से बसा महत्वपूर्ण त्योहार है। गरीब-अमीर, छोटे-बड़े तथा हर जाति के लोग इस त्योहार को हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। संपूर्ण बंगाल का जीता-जागता स्वरूप भागलपुर के छोटे से मोहल्ले बंगाली टोला में देखने को मिलता है।
गंगा नदी के किनारे बसा मानिक सरकार (बंगाली टोला) की काली बाड़ी और दुर्गा बाड़ी भागलपुर का एक प्रमुख जागृत स्थान है। यूं तो पूरे शहर में सौ के करीब मां दुर्गा की प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं, बड़े-बड़े पंडाल बनाये जाते हैं, दूर-दराज के डेकोरेटर्स अपने नये तरकीब को प्रदर्शित करने की होड़ में शामिल रहते हैं। लेकिन ऐसा कोई तामझाम इस काली बाड़ी और दुर्गा बाड़ी में देखने को नहीं मिलता। लेकिन, इसमें कोई दो राय नहीं कि शहर के लगभग श्रद्धालु एक बार इस बंगाली टोला की ओर उमड़ पड़ते हैं और मां दुर्गा की स्थापित प्रतिमा का दर्शन करते हैं। यह सिलसिला लगातार तीन-चार दिनों तक जारी रहता है। बंगाल की संपूर्ण संस्कृति की झलक यहां आयोजित दुर्गा पूजा में देखने को मिलती है। जिस प्रकार बंगाल के लोग सर्वशक्ति स्वरूपा महिषासुरमर्दिनी मां दुर्गा पर अपना अधिकार समझते हैं और यह स्वीकार करते हैं कि बंगाल मां का नैहर है, ठीक वही उत्साह व विश्वास यहां के निवासियों में भी है। इसी का जीता-जागता स्वरूप भागलपुर के बंगाली टोला में दुर्गा पूजा के अवसर पर देखने को मिलता है।
प्रसाद के तौर पर अन्न भोग का वितरण
इस बंगला पूजा की विशेषता है प्रसाद के तौर पर अन्न भोग का वितरण। इसके तहत खिचड़ी, पलाव, खीर, सब्जी, भुजिया आदि का वितरण श्रद्धालुओं के अलावा घर-घर किया जाता है। षष्ठी की रात यहां मां को स्थान ग्रहण कराया जाता है। उस रात ऐसा प्रतीत होता है कि युग-युग से प्रतीक्षित शक्ति स्वरूपा मां चण्डिका भागलपुर का संकट हरने आ गयी हैं। चूंकि भगवती का यह काल दक्षिणायन काल होता है, जिसे रात्रिकाल माना जाता है। इसीलिए तो शंख, घंटा, ढाक की तेज आवाज से मां का वंदन किया जाता है। इसके बाद से संपूर्ण क्षेत्र में भक्ति की गंगा प्रवाहित होने लगती है।
शताब्दी वर्ष मना रहा दुर्गाबाड़ी
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