It take around 4-5 Years to complete full house , Earlier since 1919 or before Construction was in same pattern ,Which required things in bulk . भारत में हमेशा से निर्माण सामग्री के रूप में मिट्टी का सबसे अधिक प्रयोग होता आ रहा है तथा यह इसकी संस्कृति का हिस्सा है। परंपरागत रूप में, विभिन्न क्षेत्रों की स्थलाकृति, जलवायु एवं आवश्यकताओं के आधार पर मिट्टी की दीवारों के निर्माण में काफी अंतर है। मिट्टी का घर बनाने की आम विधियां हैं: ढेला, टट्टर एवं लेप, सनी हुई मिट्टी, कच्ची ईंट एवं कतरन ब्लाक। आज भी लगभग 55 प्रतिशत भारतीय मकानों की दीवारें कच्ची मिट्टी की बनती हैं।
1960 के पारम्परिक मिट्टी के घर की आज की स्थिति- Traditional Mud House Made in 1960 Today's Condition due to non mantances | Mitti Ke Ghar
Mitti Ka Ghar (Clay House),
Houses made of mud are ‘kachcha’, and houses made of cement are ‘pakka’. This is a concept that has been shoved down our throats by school curricula. Yes, the human race has to move ahead and there have to be developments, but the way a single material has taken over landscapes across India (and the world) is terrifying.
OLD Time : **************** Story
मेरे गाँव में बरसों पहले हमारा एक मिट्टी का घर था. आँगन, ओसार, दालान और छोटे-छोटे कमरों वाले उस बड़े से घर से धुँए, सौंधी मिट्टी, गुड़(राब) और दादी के रखे- उठे हुए सिरके की मिली-जुली गंध आती थी. घर के पश्चिम में एक बैठक थी. बैठक और घर के बीच के बड़े से दुआर में कई छोटे-बड़े पेड़ों के साथ मीठे फल और ठंडी छाँव वाला एक विशाल आम का पेड़ था, जिसके बारे में अम्मा बताती थीं कि जब वो नयी-नयी ब्याह के आयी थीं, तो सावन में उस पर झूला पड़ता था. गाँव की बहुएँ और लड़कियाँ झूला झूलते हुए कजरी गाती थीं. हमने न कजरी सुना और न झूला झूले, पर आम के मीठे फल खाये और उसकी छाया का आनंद उठाया. तब हर देसी आम के स्वाद के आधार पर अलग-अलग नाम हुआ करते थे. उस पेड़ के दो नाम थे “बड़कवा” और “मिठउआ.” घर के बँटवारे के बाद मिट्टी का घर ढहा दिया गया. उसकी जगह पर सबके अपने-अपने पक्के घर बन गये. बड़कवा आम का पेड़ पड़ा छोटे चाचा के हिस्से में. उन्होंने उसे कटवाकर अपने घर के दरवाजे बनवा दिये. वो पेड़, जो सालों से घर की छाया बना हुआ था, उसके गिरने का खतरा था…बूढ़े लोग अनुपयोगी हो जाते हैं…मँझले चाचा के हिस्से का मिट्टी का घर अभी बचा हुआ है, पर कुछ दिनों में वो भी उसे गिरवाकर ईंट और प्लास्टर का घर बनवाएंगे. एक-एक करके यूँ ही गाँव के सारे मिट्टी के घर मिट्टी में मिल जायेंगे. कभी हुआ करते थे मिट्टी के भी घर, हम अपनी आने वाली पीढ़ी को बताएंगे. जैसा कि हमारी अम्मा उस आम के पेड़ के बारे में बताती थीं कि कभी उस पर पड़ते थे सावन में झूले, कभी इस गाँव की लड़कियाँ और बहुयें कजरी गाती थीं.