Quran Sharif folds from karab se karif Sarif dhikh ta .. .. kuran Sharif is seen when Kaba Sharif appears.
┐✭ ﺑِﺴْــــــــــــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّحْمٰنِﺍلرَّﺣِﻴﻢ ✭┌
कुरानी मालुमात
★ अस्लाफ का रमज़ान के महीने में तिलावते क़ुरान करीम का खास एहतिमाम
★रिवायात से मालूम होता है कि सहाबा व ताबेईन और तबेताबईन रमज़ानुल मुबारक में क़ुरान करीम के साथ खुसूसी शगफ रखते थे। बाज़ अस्लाफ व अकाबेरीन के मुतअल्लिक किताबों में लिखा है कि वह रमज़ाम में दूसरी मसरूफियात छोड़कर सिर्फ और सिर्फ तिलावते क़ुरान में दिन व रात का वाफिर हिस्सा खर्च करते थे। इमाम मालिक (रहमतुल्लाह अलैह) जिन्होंने हदीस की मशहूर किताब मुअत्ता लिखी है जो मशहूर फकीह फक़ीह होने के साथ साथ एक बड़े मुहद्दीस भी हैं लेकिन रमज़ान शुरू होने पर हदीस पढ़ने पढ़ाने के सिलसिले को बंद करके दिन व रात का अक्सर हिस्सा तिलावते क़ुरान में लगाते थे। अस्लाफ से मंकूल है कि वह रमज़ान के महीना खास कर आखरी अशरा में तीन दिन या एक दिन में क़ुरान करीम मुकम्मल (पूरा) फरमाते थे। सही मुस्लिम की सबसे ज़्यादा मशहूर शरह लिखने वाले और रियाज़ुस्सालेहीन के मुअल्लिफ ने अपनी किताब (अलअज़कार सफहा 102) में ऐसे शूयुख का ज़िक्र फरमाया है जो एक रकअत में क़ुरान करीम खत्म फरमाते थे। रमज़ान के मुबारक महीना में खत्म क़ुरान करीम के इतने वाक़यात किताबों में ज़िक्र हैं कि उनका इहाता नहीं किया जा सकता। लिहाज़ा इस मुबारक महीना में ज़्यादा से ज़्यादा अपना वक़्त क़ुरान करीम की तिलावत में लगाएं। नमाज़े तरावीह के पढ़ने का एहतिमाम करें और अगर तरावीह में खत्म क़ुरान का एहतिमाम किया जाए तो बहुत बेहतर व अफज़ल है क्योंकि हदीस में आया है कि हर साल रमज़ान के महीने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हज़रत जिबरईल अलैहिस्सलाम के साथ क़ुरान के नाज़िलशुदा हिस्सों का दौर करते थे। जिस साल आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इंतिकाल हुआ उस साल आप ने दो बार क़ुरान करीम का दौर फरमाया। रमज़ान के महिने के बाद तिलावते क़ुरान का रोज़ाना एहतिमाम करें ख्वाह मिकदार में कम ही क्यों न हो, और उलमा कराम की सरपरस्ती में क़ुरान करीम को समझ कर पढ़ने की कोशिश करें। क़ुरान करीम में आए हुए अहकाम व मसाइल को समझ कर उन पर अमल करें और दूसरों तक पहुंचाऐं अगर हम क़ुरान करीम के मानी व मफहूम नहीं समझ पा रहे है तब भी हमें तिलावत करना चाहिए क्योंकि क़ुरान की तिलावत भी मतलूब है। हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि जो शख्स एक हर्फ क़ुरान करीम का पढ़े उसके लिए इस हर्फ के बदले एक नेकी है और एक नेकी का बदला दस नेकी के बराबर मिलता है। मैं यह नहीं कहता कि अलिफ लाम मीम एक हर्फ है बल्कि अलिफ एक हर्फ है, लाम एक हर्फ है और मीम एक हर्फ। (तिर्मीज़ी)
★तिलावते क़ुरान के कुछ आदाब हैं जिनका तिलावत के वक़्त खास ख्याल रखा जाए ताकि हम अल्लाह के नज़दीक अजरे अज़ीम के मुसतहिक़ बनें। तिलावत चूंकि एक इबादत है लिहाज़ा रिया व शोहरत के बजाए इससे सिर्फ और सिर्फ अल्लाह तआला की रज़ा मतलूब व मकसूद हो, पाकी की हालत में अदब व इहतिराम के साथ अल्लाह के कलाम की तिलावत करें। तीसरा अहम अदब यह है कि इतमिनान के साथ ठहर ठहर कर और अच्छी आवाज़ में तजवीद के कवाएद के मुताबिक तिलावत करें। तिलावत क़ुरान के वक़्त अगर आयतों के मानी पर गौर व फिक्र करके पढ़ें तो बहुत ही बेहतर है। क़ुरान करीम के अहकाम व मसाइल पर खुद भी अमल करें और उसके पैगाम को दूसरों तक पहुंचाने की कोशिश करें।
★अल्लाह तआला हम सबको रोज़ा और तिलावते क़ुरान करीम की बरकत से तक़वा वाली जिंदगी गुज़ारने वाला बनाए और हमें दोनों जहां में कामयाबी व कामरानी अता फरमाए आमीन।
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